सबके प्रिय नटखट लाल श्रीकृष्णा जी की Shri Krishna Chalisa PDF डाउनलोड करने के विषय में जानकारी आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से प्रदान करेंगे l मेरे प्यारे दोस्तों आप सभी को पता है कि कान्हा जी हम लोगो के लिए कितने प्रिय है l हर कोई श्रीकृष्ण जी की राश लीला को सुनकर मनमुग्ध होकर प्रसन्नचित हो जाता है l यदि आप हमारे प्यारे नटखट लाल जी को प्रसन्न कर उनकी कृपा प्राप्त करना चाहते है तो हम आपको इस लेख में उनकी मन पसंद स्तुति प्रदान करने वाले है l

श्री कृष्ण चालीसा हिन्दू धर्म का एक विशेष धार्मिक ग्रन्थ में से एक है जिसमे भगवान श्रीकृष्ण जी अनोखी महिमा, उनके विलक्षण गुण और भक्ति का गुणगान किया गया है l जो श्रद्धालुओं/भक्तों के लिए भक्ति का एक अनोखा माध्यम है l जिसके तहत हम निरंतर आराधना कर भक्ति के रंग में लीन हो सकते है और परम ब्रह्म को पा सकते है l
Shri Krishna Chalisa PDF /श्रीकृष्ण चालीसा का पाठ
॥ दोहा ॥
बंशी शोभित कर मधुर, नील जल्द तनु श्यामल ।
अरुण अधर जनु बिम्बा फल, नयन कमल अभिराम ॥
पुरनिंदु अरविन्द मुख, पिताम्बर शुभा साज्ल ।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचंद्र महाराज ॥
॥ चौपाई ॥
जय यदुनंदन जय जगवंदन । जय वासुदेव देवकी नंदन ॥१॥
जय यशोदा सुत नन्द दुलारे । जय प्रभु भक्तन के रखवारे ॥२॥
जय नटनागर नाग नथैया । कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया ॥३॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो । आओ दीनन कष्ट निवारो ॥४॥
बंसी मधुर अधर धरी तेरी । होवे पूरण मनोरथ मेरी ॥५॥
आओ हरी पुनि माखन चाखो । आज लाज भक्तन की राखो ॥६॥
गोल कपोल चिबुक अरुनारे । मृदुल मुस्कान मोहिनी डारे ॥७॥
रंजित राजिव नयन विशाला । मोर मुकुट वैजयंती माला ॥८॥
कुंडल श्रवण पीतपट आछे । कटी किंकिनी काछन काछे ॥९॥
नील जलज सुंदर तनु सोहे । छवि लखी सुर नर मुनि मन मोहे ॥१०॥
मस्तक तिलक अलक घुंघराले । आओ श्याम बांसुरी वाले ॥११॥
करि पी पान, पुतनाहीं तारयो । अका बका कागा सुर मारयो ॥१२॥
मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला । भये शीतल, लखिताहीं नंदलाला ॥१३॥
सुरपति जब ब्रिज चढ़यो रिसाई । मूसर धार बारि बरसाई ॥१४॥
लगत-लगत ब्रिज चाहं बहायो । गोवर्धन नखधारी बचायो ॥१५॥
लखी यशोदा मन भ्रम अधिकाई । मुख महँ चौदह भुवन दिखाई ॥१६॥
दुष्ट कंस अति ऊधम मचायो । कोटि कमल कहाँ फूल मंगायो ॥१७॥
नाथी कालियहिं तब तुम लीन्हें । चरनचिंह दै निर्भय किन्हें ॥१८॥
करी गोपिन संग रास विलासा । सब की पूरण करी अभिलाषा ॥१९॥
केतिक महा असुर संहारयो । कंसहि केश पकडी दी मारयो ॥२०॥
मातु पिता की बंदी छुडाई । उग्रसेन कहाँ राज दिलाई ॥२१॥
माहि से मृतक छहों सुत लायो । मातु देवकी शोक मिटायो ॥२२॥
भोमासुर मुर दैत्य संहारी । लाये शत्दश सहस कुमारी ॥२३॥
दी भिन्हीं त्रिन्चीर संहारा । जरासिंधु राक्षस कहां मारा ॥२४॥
असुर वृकासुर आदिक मारयो । भक्तन के तब कष्ट निवारियो ॥२५॥
दीन सुदामा के दुःख तारयो । तंदुल तीन मुठी मुख डारयो ॥२६॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे । दुर्योधन के मेवा त्यागे ॥२७॥
लाखी प्रेमकी महिमा भारी । नौमी श्याम दीनन हितकारी ॥२८॥
मारथ के पार्थ रथ हांके । लिए चक्र कर नहीं बल थाके ॥२९॥
निज गीता के ज्ञान सुनाये । भक्तन ह्रदय सुधा बरसाए ॥३०॥
मीरा थी ऐसी मतवाली । विष पी गई बजाकर ताली ॥३१॥
राणा भेजा सांप पिटारी । शालिग्राम बने बनवारी ॥३२॥
निज माया तुम विधिहीन दिखायो । उरते संशय सकल मिटायो ॥३३॥
तव शत निंदा करी ततकाला । जीवन मुक्त भयो शिशुपाला ॥३४॥
जबहीं द्रौपदी तेर लगाई । दीनानाथ लाज अब जाई ॥३५॥
तुरतहिं वसन बने ननन्दलाला । बढ़े चीर भै अरि मुँह काला ॥३६॥
अस अनाथ के नाथ कन्हैया । डूबत भंवर बचावत नैया ॥३७॥
सुन्दरदास आस उर धारी । दयादृष्टि कीजे बनवारी ॥३८॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो । छमोबेग अपराध हमारो ॥३९॥
खोलो पट अब दर्शन दीजे । बोलो कृष्ण कन्हैया की जय ॥४०॥
॥ दोहा ॥
यह चालीसा कृष्ण का, पथ करै उर धारी ।
अष्ट सिद्धि नव निद्धि फल, लहे पदार्थ चारी ॥
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